आरटीआई कार्यकर्ताओं ने समस्याओं को लेकर राज्य सूचना आयोग एवं महामहिम राज्यपाल सहित मध्यप्रदेश शासन को सामूहिक ज्ञापन सौंपा। और न्याय यात्रा प्रारंभ।

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शिवपुरीआरटीआई
कार्यकर्ताओं ने समस्याओं को लेकर राज्य सूचना आयोग एवं महामहिम राज्यपाल सहित मध्यप्रदेश शासन को सामूहिक ज्ञापन सौंपा। और न्याय यात्रा प्रारंभ। माखन सिंह धाकड़ बैराड़ शिवपुरी। शिवपुरी आरटीआई कार्यकर्ताओं ने जानकारी देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश से लेकर अन्य राज्य के आरटीआई कार्यकर्ता के साथ मिलकर लगातार न्याय यात्रा कार्यक्रम जारी हैं।आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा भारत के सभी राज्यों तक पहुंचना हमारा मकसद हैं।राज्य सूचना आयोग मध्यप्रदेश,महामहिम राज्यपाल मध्यप्रदेश एवं मुख्य सचिव मध्यप्रदेश को सामूहिक ज्ञापन देकर अविलंब संसद में पारित  सूचना अधिकार अधिनियम 2005 का उचित क्रियान्वयन हेतु आरटीआई कार्यकर्ताओं का सामूहिक ज्ञापन सौंपा।ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य राज्य सूचना आयोग मध्यप्रदेश में लंबित सुनवाई को जल्द निर्णय लेकर भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध कार्यवाही करना एवं आरटीआई कार्यकर्ताओं को विशेष सुरक्षा अधिनियम के तहत सुरक्षा प्रदान करने तथा आरटीआई कार्यकर्ताओं के विरुद्ध किसी प्रकार का झूठा मुकदमा दर्ज ना हो इस प्रकार का समस्याओं को लेकर राज्य सूचना आयोग एवं महामहिम राज्यपाल सहित मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन को सामूहिक ज्ञापन में मुख्य रूप से शामिल हुए हसीबुर रहमान किशनगंज बिहार,अभिषेक कुमार भागलपुर बिहार,मध्य प्रदेश के राघवेंद्र दुबे, रश्मि शैख,शैख इस्माइल,सफीक अहमद मंसूरी,अजय कुमार,प्रेम नारायण गुजराती,दीपक परामर,दशरथ परामर,रवि यादव,जितेंद्र वर्मा,सुनीता नाहर,देवेंद्र नाहर,अधिवक्ता दिनेश सिंह,हरीश सोलंकी,रामप्रसाद लोढिया,रामगणेश रावत विजयपुर श्योपुर,पवन कुमार,भूपेंद्र सिंह,दिगंबर,एजाज अहमद,नूरगुल खान,जिया खान, मो.शब्बीर,जी.एस. चौहान,जयपाल सिंह,प्रेमसिंह सोलंकी,आर.के.सोनी,कपिल शर्मा,माखन सिंह धाकड़ बैराड़ शिवपुरी,हरवीर सिंह चौहान शिवपुरी,जितेंद्र चौडेल,नेहुल कुमार,बीआर मेशरम,लखन लाल कासदेवकर इंजिनर मो इमरान किशनगंज बिहार,रामदेव कुमार आसनसोल पश्चिम बंगाल,सुमन सौरव झारखंड,इत्यादि सैकड़ो आरटीआई कार्यकर्ता मौजूद रहें।

सरकार के गले की फांस बन रहा सूचना मांगने का अधिकार

आरटीआई के तहत सूचना मांगने का अधिकार तो मिल गया, किंतु वास्तविकता यह है कि विभागों से जानकारी मांगना मध्य प्रदेश में गले की फांस बनता जा रहा है। इनके उत्पीड़न का मामले लगातार बढ़ रहे हैं. सूचना का अधिकार

(आरटीआई) कानून के जरिए लोगों को किसी भी सरकारी विभाग से उससे संबंधित क्रियाकलापों के संबंध में अद्यतन जानकारी मांगने का अधिकार तो मिल गया, किंतु इसके साथ-साथ सूचना मांगने वालों को संबंधित अधिकारियों या कर्मचारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ रहा है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं।

जिसमें आरटीआई कार्यकर्ता के खिलाफ तरह-तरह के आरोप लगाते हुए मुकदमे दर्ज करा दिए गए आमजन के लिए प्राथमिकी दर्ज कराना जहां टेढ़े खीर है. वहीं पुलिस अफसरों या बाबुओं की तरफ से एफआइआर दर्ज करने में उदार रवैया अपनाती है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ झूठा मुकदम

मध्यप्रदेश में पिछले दशक में सैकड़ों आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ रंगदारी मांगने, अपहरण के प्रयास, एससी-एसटी एक्ट के तहत उत्पीड़न, धमकी देने या छेड़खानी जैसे मामले दर्ज कराए गए. सूचना मांगने वाले ये सभी लोग मुकदमेबाजी में उलझे हैं. गृह विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार इन लोगों ने अब राज्य सरकार व राज्य सूचना आयोग से न्याय की गुहार लगाई है। दरअसल लोक कल्याण से संबंधित सरकारी योजनाओं में अनियमितता या लापरवाही जैसी करतूत को छिपाने वाले अधिकारी या कर्मचारी आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करते हुए फर्जी मुकदमा दर्ज कराते हैं. आरटीआई के अधिकतर मामले पंचायती राज, नगर निगम, ग्रामीण व नगर विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, भूमि सुधार, राजस्व तथा पुलिस से जुड़े होते हैं यह देखा गया है कि अगर संबंधित अफसर अनुसूचित जाति या जनजाति का पदाधिकारी है तो वह एससीएसटी एक्ट के तहत उत्पीड़न का मामला दर्ज कराता है और वहीं अगर महिला अफसर है तो छेड़खानी का आरोप लगाते हुए फर्जी एफआइआर दर्ज कराने से गुरेज नहीं करती है। दिलचस्प यह है कि ये फर्जी मुकदमे पुलिस द्वारा आसानी से दर्ज कर लिए जाते हैं और अगर मामला पुलिस अधिकारी या कर्मचारी से जुड़ा हो तो फिर पूछिए ही मत वैसे भी अधिसंख्य मामलों में सरकारी कर्मचारी या अधिकारी आरटीआई की अर्जियों पर गौर फरमाना ही लाजिमी नहीं समझते और अगर कहीं से मामला उनके कृत्यों को उजागर करने वाला होता है तो प्रथमदृष्टया आवेदक को डराते-धमकाते हैं और अगर दबाव बढ़ा तो फिर झूठा मुकदमा दर्ज करा देते हैं।

जानकारी के लिए लोगों को सालभर से अधिक इंतजार करना पड़ता

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत यह प्रावधान है कि आवेदक को 30 दिन अंदर संबंधित विभागीय अधिकारी द्वारा उपलब्ध करा दी जाए. इसके लिए लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, किंतु कई मामलों में वांछित जानकारी के लिए लोगों को सालभर से अधिक इंतजार करना पड़ता है. और जब लोग अपनी शिकायत लेकर राज्य सूचना आयोग पहुंचते हैं तो वहाँ भी तय की गई तीस दिन की अवधि में कोई सुनवाई नहीं होती. मामलों में सुनबाई साल दो साल बाद होती है।उत्पीड़न की जांच पर ध्यान नहीं। 

ऐसा नहीं है कि सूचना मांगने वालों के हो रहे उत्पीड़न पर सरकार का ध्यान नहीं है. सरकार भी यह समझती है कि आरटीआई एक्टिविस्टों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराए जा रहे हैं और ऐसे मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि ही दर्ज हो रही है।

जानकारी के मुताबिक फर्जी मुकदमों के इन मामलों की जांच के लिए जांच का जिम्मा उन अफसरों को ही दे दिया गया जिनके खिलाफ आरटीआई कार्यकर्ता को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया गया है।

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